मिलती है कभी हार इससे, दिलाता है यह जीत भी
करता किसी का अपमान, बढ़ाता किसी का मान भी ।
दुर्जन ,सुजन ,निर्धन हर जन का यह वस्त्र है
शब्द भी शस्त्र है, शब्द ही सर्वत्र है ।
अकरणीय बन जायेगा, अगर अंकुश नहीं लगाओगे।
निष्फल भी हो जायेगा,जो स्वप्रज्ञा तुम न दिखाओगे।
अभिज्ञ, अनभिज्ञ, सर्वज्ञ को भी करता यह निरस्त है
शब्द भी शस्त्र है, शब्द ही सर्वत्र है ।
यज्ञसेनि के शब्द से ही मृत्यु हुई अनेक थीं,
भूसुता ने शब्द से ही भयभीत किया रावण को भी,
लक्ष्मी, पद्मावती, सावित्री का भी बना यह प्रशस्त्र है
शब्द भी शस्त्र है, शब्द ही सर्वत्र है।
पद्यकार
प्रवीण शर्मा
सहायक अध्यापक
द मान स्कूल
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